
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे नैना चार करो
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मुझसा प्यार करो
कब चाहा मैंने के तुम मेरे जैसा इज़हार करो
कब चाहा मैंने के तुम अपने प्रेम का इकरार करो
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मिलने को तड़पो
कब चाहा मैंने के तुम बादल जैसे मुझपर बरसो
कब चाहा मैंने के तुम अपना सबकुछ मुझपर लूटा बैठो
कब चाहा मैंने के तुम अपना चैन सुकून गवा बैठो
कब चाहा मैंने के तुम चाहो मुझको दीवानों सा
कब चाहा मैंने के तुम याद करो मुझे बहानों सा
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मिलो बहाने से
कब चाहा मैंने के तुम मुझे महफ़ूज रखो जमाने से
कब चाहा मैंने के तुम एक पल मे मेरे हो जाओ
कब चाहा मैंने के तुम पूरी तरह से बदल जाओ
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे झुठी तकरार करो
कब चाहा मैंने के तुम बस आँखों-आँखों में प्यार करो
हाँ मगर चाहा था मैंने एक दिन तेरा सबर टूटे
जैसे मेरे दिल में फूटा, तुझमे भी प्रेम का अंकुर फूटे
हाँ मगर चाहा था मैंने तुम बस मुझसे हीं प्यार करो
जैसे रटूँ मैं नाम तुम्हारा तुम मेरे नाम का जाप करो
हाँ यही चाहा था मैंने हम एक-दूजे के हो जाए
हांथ पकड़ कर एक-दूजे का बेसुध होकर खो जाए
हाँ यही चाहा था मैंने पहले तुम इजहार करो
जितना मैंने चाहा तुमको तुम मुझसे उतना प्यार करो
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