
कोठियां हजारों मैंने हाथों से बनाई है
गाड़ियां करोड़ो की हो मैंने तो चलाई है
अनगिनत ख़ज़ाने का पहरेदार मैं रहा हूँ
मालिकों के काले सच का राजदार मैं रहा हूँ
काम कोई छोटा हो या भेदना पहाड़ हो
मुस्कुरा के करता हूँ मैं चाहे वेदना अपार हो
गन्दगी समाज की मैं साफ करता रह गया
कोई कुछ खोया नहीं और मुफ्त में मैं मर गया
कपडे धो रहा कहीं पे खाना मैं बना रहा
जुते साफ़ करके अपना पेट मैं चला रहा
काम सब सफाइयों के अपने ही तो हाथ हैं
साफ़ ये वातावरण हैं जब तक अपना साथ हैं
उम्र भर समाज में जो हमसे तन भी ना छुआते हैं
अग्निदान पाकर हमसे मोक्ष को वो पाते हैं
तन से साफ़ ना हो लेकिन मन हमारा पाक हैं
सेवा के लिए बने हैं यही हमारा श्राप है
देश के विकास में हम भागीदार समान हैं
मिल गया जो हक़ का अपने वो ही तो सम्मान हैं
जो हैं ऊँचे जिनको अपने जाती का गुमान हैं
हम जो ना हो जीवन उनका नर्क के सामान हैं
जिनके घर अपने घर का पानी भी चलता नहीं
बिन हमारे शादी, श्राद्ध पूर्ण होता हैं नहीं
दर्द ये हैं लोग हमको कर्म से बुलाते हैं
हम वही हैं जिनको सारे हरिजन बुलाते हैं.
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