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तू उगता सा सूरज, मैं ढलता सितारा
तेरी एक झलक से मैं छुप जाऊँ सारा
तू गहरा सा सागर, मैं छिछलाता पानी
तू सर्वगुण सम्पन्न मैं निर्गुण अभिमानी
तू दीपक के जैसा मैं हूँ एक अंधेरा
तू निराकार रचयिता, मैं अंकुर हूँ तेरा
तू पर्वत सा ऊंचा, जो नभ को भी चूमे
मैं खाई के जैसा धरा भी ना चूमे
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