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बूंदों का बरसना यूं बिजली का कड़कना
कुछ याद पुरानी सी तड़पा के हमको चली गयी
बात हल्की सी थी बिल्कुल फुहारों की तरह
अनसुनी सी कानो में सुना के वो चली गयी
एक मुद्दत से हमने अश्कों को छुपा रक्खा था
बेदर्द थी बारिश आज हमे रुला के चली गयी
आज मस्ती थी बड़ी झूमता हर एक ग़म था
छत फूटी थी मेरी बि स्तर भींगा के चली गयी
पक्के मकान को गर्मी से जैसे राहत थी मिली
फुटपाथ के बर्तन को संग बहा के चली ग
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