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दिल के अंदर कुछ टूट गया अपना सा कोई रूठ गया
लाख सम्हाला मैंने पर साथ किसी का छुट गया
वो साथी था वो हमदम था मेरे घावों पर मरहम था
मैं जहां गया वो वहाँ चला हमराही मेरा हरदम था
हाव भाव से ढीला था स्वभाव से थोड़ा शर्मिला था
आवाज़ में नरमी थी उसकी बदन से थोड़ा लचीला था
वो यार था मेरा प्यार नहीं था लोगों को एतबार नहीं
ना जाने क्यों ऐसी बातें लोगो को होती स्वीकार नहीं
तन से नर दिखने वाला, वो मन से पुरा नारी था
कुंठित समाज के नज़रों में तो वो पूर्ण व्यभिचारी था
ये गलती तो कुदरत की है आभा अलग काया अलग
तन से मन का है मेल नही जिस्म अलग और रूह अलग
खुद को नारी जानने वाला नारी पर ललचाये कैसे
मन से नर को चाहने वाला, नारी से नैन लडाये कैसे
पर यारी है सबसे अलग जिसमे लिंग का भेद नहीं
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