अधूरा ख़्वाब's image
Poetry2 min read

अधूरा ख़्वाब

Aman SinhaAman Sinha April 8, 2022
Share0 Bookmarks 44289 Reads1 Likes


ख़्वाब देखे जो भी मैंने सब अधूरे रह गए

मिटटी के बर्तन थे कच्चे, पानी के संग बह गए


रेत की दीवार थी और दलदली सी छतरही

मौज़ों के टकराव से वो अंत तक लड़ती रही


साल सोलह कर लिए जो पूरे अपने उम्र के

कैद में घिरने लगी मैं बिन किये एक जुर्म के


स्कूल का बस्ता भी मेरा कोने में था पड गया

सांस लेती किताबों पर भी धूल सा एक जम गया

 

शौक दिल में आ बसा था “लॉ” की पढ़ाई का

चल पड़ी थी थाम के मैं अस्त्र उस लड़ाई का


दो दिनों भी चल सका ना क्रोध मेरे भाई का

बस मेरा एक ही साथी था जो इस लडाई का


चूल्हा और चौकी में मेरा वक़्त यूं कटता गया

घर की लाचारी के आगे दम मेरा घुटता गया


एक अधूरी चाह बनके ग़म मेरा बढ़ता गया

हौंसला जो साथ में था वो कहीं खोता गया


No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts