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घर की टूटी फूटी दीवारें
उन दीवारों पे टंगी
जंग लगी तलवारें
गवाह है
कब कब किसके ख़्वाब टूटे है
कितनों के डर से हौसले टूटे है
अब वो भी ऊब गया है
भीगतें नयनों में डूब गया है
तलवारें टंगे टंगे थक गए
नए नए हथियार देख भड़क गए
वो खुद को घर का हिस्सा बता रहे
ये नए लोग उनको पुराना किस्सा बता रहे
खैर वक्त वक्त की बात है
सूरज छुप जाए तो रात है
हमसे दुश्मनी भारी पड़ेगी
बस छू जाए तो रक्त बहेगी...
~अमन
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