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अभी लिखा था तुम्हें किताबों में
यादें बुने जा रहे थे ख़्वाबों में
इक तैरती झरोखें में बदन अटक गया मेरा
अन्यथा नाम लिखें जाते मेरे खिताबों में..
कभी कहीं उछलते तरंगें दिखे होंगे
उससे भिगतें मन भी दिखे होंगे
जब सबको समेट कर वापस जाते है तो
भरे-भरे नयन दिखे होंगे...
हम भी इक रोज़ लौटेंगे
समय को तराजुओं में तौलेंगे
महसूस होगी तुम्हें हमारे अंदर की गर्मी
तुम्हारें चाय से ज्यादा हम खौलेंगे..
~अमन
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