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बेटों से पहले हिसाब सिख जाती है
घर के किनारों में अक्सर दिख जाती है
पापा के हर बात में हां कहती है
ना चाहते हुए भी "बिक" जाती है..
किससे कहे मन के
दरारों की कहानियां
महलों में कैद हो जाती,
सबके दिल की रानियां..
सारे रिश्तों की डोर बांध रखी है
अंदर के ज्वाला को साध रखी है
सिमटे सिमटे आसमां है उनके
सीने पे रिश्तों का बोझ जमा है जिनके..
हिंसा से नहीं डरती वो
आए दिन "बेल्टों" से लड़ती वो
अरे कौन सहे, बदन पे आग इतना
रोज़ आधा आधा मरती वो..
दो चार की उपलब्धि पे इतराता देश
पूछो उनसे कैसे जीता ये रेस
रिश्तें नातें, गंदे इरादें सबसे
कैसे खुद को बचाया
टुकड़ों टुकड़ों में बंटे सपनों से
कैसे इतिहास बनाया
~अमन
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