बेटियाॅं's image
Share0 Bookmarks 86 Reads1 Likes
बेटों से पहले हिसाब सिख जाती है
घर के किनारों में अक्सर दिख जाती है
पापा के हर बात में हां  कहती है
ना चाहते हुए भी "बिक" जाती है..

किससे कहे मन के 
दरारों की कहानियां
महलों में कैद हो जाती, 
सबके दिल की रानियां..

सारे रिश्तों की डोर बांध रखी है
अंदर के ज्वाला को साध रखी है
सिमटे सिमटे आसमां है उनके
सीने पे रिश्तों का बोझ जमा है जिनके..

हिंसा से नहीं डरती वो
आए दिन "बेल्टों" से लड़ती वो
अरे कौन सहे, बदन पे आग इतना
रोज़ आधा आधा मरती वो..

दो चार की उपलब्धि पे इतराता देश
पूछो उनसे कैसे जीता ये रेस
रिश्तें नातें, गंदे इरादें सबसे
कैसे खुद को बचाया
टुकड़ों टुकड़ों में बंटे सपनों से 
कैसे इतिहास बनाया

~अमन


No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts