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सुविधाओं का त्याग जरूरी हो जाता है,
जब एक ओजस्वी पुंज नगर का,
दूर प्रकाशित होने जाता है,
जब ले दृढ़ संकल्प, सफलता का मन में;
अपने सपनों की नौका को खेंयने में;
सारे सुख को त्याग नगर के, वो सन्यासी हो जाता है,
सुविधाओं का त्याग जरूरी हो जाता है।
पापा के आंखों की पुतली,मां का तारा बन जाता है।
जब वह विलक्षण प्रतिभा का बालक प्रयाग रहने आ जाता है
निशा-भोर ये दोनों छोर, जब एक समान हो जाता है,
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