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कलम रुक सी गई है मेरी।
शायद सियाही खत्म है।
या अल्फाजों की कमी आखिर कलम क्यू न रुके जब मोहब्बत ही खत्म हो गई है उनकी।
में एक मुद्दत हमराह बनकर साथ चला उसके ।
उसका सोना, जगना,सवेरा और साम की रंगीन मुलकाते ।
बातो ही बातो में मेरे कंधे पर सर रख के रोना फिर सोना ।
हां सब कुछ याद है मुझे ।
वो पूछते है कोन हो तुम ।
क्या दौर था ...?
जब मोहब्बत नई - नई थी।
नई कसमें नई वादे। नई थे तुम भी और पाक साफ थे इरादे हमारे।
बहुत वक्त गुजर गया ।शायद वो तस्वीर धुंधली सी हो गई ।
आवाज सुनकर भी नही पहचानते ।
एक दौर था किसी भी नंबर से करू और खामोश रह
शायद सियाही खत्म है।
या अल्फाजों की कमी आखिर कलम क्यू न रुके जब मोहब्बत ही खत्म हो गई है उनकी।
में एक मुद्दत हमराह बनकर साथ चला उसके ।
उसका सोना, जगना,सवेरा और साम की रंगीन मुलकाते ।
बातो ही बातो में मेरे कंधे पर सर रख के रोना फिर सोना ।
हां सब कुछ याद है मुझे ।
वो पूछते है कोन हो तुम ।
क्या दौर था ...?
जब मोहब्बत नई - नई थी।
नई कसमें नई वादे। नई थे तुम भी और पाक साफ थे इरादे हमारे।
बहुत वक्त गुजर गया ।शायद वो तस्वीर धुंधली सी हो गई ।
आवाज सुनकर भी नही पहचानते ।
एक दौर था किसी भी नंबर से करू और खामोश रह
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