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हिंदी में,
नहीं बिल्कुल नहीं,
फ़्रेंच चाइनीज नहीं सही,
अंग्रेजी तो है।
लोग कल को क्या सोचेंगे,
मैं तुम ऐ ओ हट!
हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं है।
प्रेम है पहला प्रेम पिताजी,
और पहले प्रेम से बेवफाई!
ना बाबा ना,
अ अ पर पाई आ,
आपने ही बताया था।
मैं पढ़ता हूं,
दिनकर को प्रेमचंद्र को,
मैं पढ़ता हूं कफन में,
माधव आलू के लालच में,
बेचैन पत्नी को नहीं देखता।
खैर छोड़िए वो सब बातें,
सारे रिश्ते भूल जाइए,
कहां गई मानवता।
आपके आंखों पर,
यह तो समाज है न,
आज है,
कल को नहीं होंगे।
मुंह खोलो कुछ तो बोलो,
क्यों अपने आप से नाराज हो न।
गांव में,
माता जी के जी में,
पुरानी चिट्ठी में,
घी है सनी लिट्टी में,
हीर रांझे की तरह।
इक इश्क में लथपथ है हिंदी।।
-आलोक रंजन
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