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मौन शिकायत
सुबह सुबह रात-भर के पड़े ओस को हटाते हुए,
आंख मल के, थोड़ा चल के मेरे तरफ आते हुए।
उसकी जिज्ञासा मुझे पता था पुछता आप कौन,
लेकिन हम एक दुसरे को ही देखते रह कर मौन।
वहां प्रश्न उसके पास भी था प्रश्न मेरे पास भी था,
उसके हालात ऐसे थे कि मन मेरा भी उदास था।
उसके काम धंधा कपड़े व बेड बिस्तर झाड़ू बर्तन,
बिखरे हैं एक सड़क के किनारे कैसा है परिवर्तन।
कभी रोता नहीं होगा पैसों के लिए मांगता जो है,
और शिकायत भी किससे करें कौन सुनने को है।
-आलोक रंजन
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