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हे बरसाती नदियां ,
हे बलखाती नदियां ,
क्यों तुम हर साल में ?
केवल कुछ एक महीनो
के लिए ही आती हो,
क्यों नही तुम भी
गंगा के तरह
सभी के पाप धो पाती हो ?
क्यों तुम कुछ दिनों में ही ,
सभी को प्यासी कर जाती हो?
क्यों तुम चंद मौसमों
पर निर्भर हो ?
क्यों तुम बेटी के पीहर में
आने के तरह आती हो ?
छनिक खुशियां दे कर
फिर चली जाती हो।
हे बरसाती नदी ,
हे बलखाती नदी ,
क्या तुम्हें पता है ?
तुम्हारे आने से प्रसन्न
हो जाता किसान के मन,
धोबी, मछुवारे और
केवट का तन।
प्यास तो बुझाती
हर एक प्यासे का।
पर कुछ दिनों में ही
फिर प्यासी कर जाती हो ।
'आलोक अनंत'
हे बलखाती नदियां ,
क्यों तुम हर साल में ?
केवल कुछ एक महीनो
के लिए ही आती हो,
क्यों नही तुम भी
गंगा के तरह
सभी के पाप धो पाती हो ?
क्यों तुम कुछ दिनों में ही ,
सभी को प्यासी कर जाती हो?
क्यों तुम चंद मौसमों
पर निर्भर हो ?
क्यों तुम बेटी के पीहर में
आने के तरह आती हो ?
छनिक खुशियां दे कर
फिर चली जाती हो।
हे बरसाती नदी ,
हे बलखाती नदी ,
क्या तुम्हें पता है ?
तुम्हारे आने से प्रसन्न
हो जाता किसान के मन,
धोबी, मछुवारे और
केवट का तन।
प्यास तो बुझाती
हर एक प्यासे का।
पर कुछ दिनों में ही
फिर प्यासी कर जाती हो ।
'आलोक अनंत'
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