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यादों का क्या
किसी वक्त की पैबंद थोड़ी है।
जब भी देखती है तन्हा , चली आती है।
कारवां थकता भी नही रुकता भी नही
जमाने भर की यादें जहन में, जिंदा हो जाती है
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यादों का क्या
किसी वक्त की पैबंद थोड़ी है।
जब भी देखती है तन्हा , चली आती है।
कारवां थकता भी नही रुकता भी नही
जमाने भर की यादें जहन में, जिंदा हो जाती है
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