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गुजरे वक्त की तहरीरें देकर चेहरे को
लम्हा लम्हा गुजर रहा है।
यादों के पनघट को जैसे
सुबहो का सूरज निगल रहा है।
फिर एक दिसंबर निकल रहा है।
कैद.......वक्त का रेशा रेशा
बंद मुट्ठी से मेरी ,
पल पल झड़ रहा है....
चेहरे पर कुछ लकीरों का जमघट भ
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