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आईना खुद में कहा रहता है।
जिससे भी मिलता है उसी सा दिखता है।
उम्रें गुजर जाती है इक इक पल सहेजते हुए उसकी।
कभी टूटता है तो कभी बिखरता है।
लोग टूटते बिखरते हुए इक उम्र काटते है।
और आईना सब कुछ बयां करता रहता है।
देख आईना कई पल जवां होते है।
पर जो पिछली बार था मैं उसमे
मुझमें भी कहा फिर वो शख्स रहता है।
ढूंढता हूं खोजता हूं पर आईना कहा कुछ कहता है।
खामोशी की चादर ओढ़े आईना मुझे देखता है और बयां करता है।
हा ये सच है जिससे मिलता है आईना उसी सा दिखता है।
KuldeepDwivedi "Kd"
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