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तुम सुनो गुल–मोहर

Ankit YadavAnkit Yadav March 25, 2023
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तुम सुनो गुल-मोहर


ये बदलती हवा तो महज़ इक इशारा समेटे हुए ज़ेहन में है मिरे

तुम सुनो गुल–मोहर

ये हसीं वादियाँ ये बहारों के मौसम गुज़र जाऍंगे

पतझड़ों के इशारे पे तुम और हम टूट कर वादियों में बिखर जाएँगे

साज़िशों की गली से गुज़रते हुए और अफ़ीमों के मद से शराबोर हो

मंज़िलों की तमन्ना लिए ज़ेहन में बारिशों के सहारे अगर जाएँगे

सोचता हूँ कभी के तिरे आख़िरी फूल के शाख़ से टूट जाने के बाद

तेरे बाग़ों में ख़ुशबू बचे ही नहीं तो ये आदी परिंदे किधर जाएँगे

ये हरी डालियाँ ये भरी वादियाँ

सुर्ख़ नाज़ुक से फूल

और ये आबादियाँ

ये हमेशा तो यूँ ही रहेंगे नहीं

पतझड़ों की नज़र जब पड़ेगी इधर

घेर लेंगी वबाएँ जिधर जाओगे

फिर ये नाज़ुक तराशे हुए जिस्म को अपने लेकर बताओ किधर जाओगे

तुम सुनो गुल–मोहर

मौसमों का बदलना तो दस्तूर है

मैं बताता हूँ पर तुम समझते नहीं

वो जिन्हे शौक़–ए–हिजरत गवारा न हो

वो कभी मौसमों से उलझते नहीं

इस बदलते चले जा रहे दौर में तुम गिरोगे मगर फिर सॅंभल जाओगे

क्या बदलते हुए मौसमों की तरह फिर किसी रोज़ तुम भी बदल जाओगे

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