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चाहता हूं मैं ,
चाह है मेरी
तुम रहो प्रतीक्षारत,
जब मैं आऊं चलकर,
कंटीली, पथरीली राहों से
रेतीली राहों में तपकर
लोहलुहान, छाले भरे, रक्तरंजित पांव लिए ,
तब सुस्ताऊंगा मैं
बैठकर घड़ीभर तुम्हारे पास
रखकर तुम्हारी गोद में सर अपना।
तुम बस रख भर देना,
मेरे घांवों पर अपना हाथ,
कर देना, होंठों से हल्की सी हवा,
सहला देना ,हौले से मेरे माथे को
फेर देना ,मेरे बालों में ऊंगली
कानों में फूंक देना ,अपना प्यार।
बस इतने भर से ही,
भर जायेंगें मेरे सारे घाव,
मिट जायेगी मेरी सारी थकान,
हो जाऊंगा मैं तैयार
फिर किसी नयी यात्रा के लिए।
जानता हूं यह स्वार्थ भरी कामना है
अपने संघर्षों की थकान मिटाने को,
देकर किसी को जाना
वर्षों की प्रतीक्षा का बोझ ,
पर कौन नहीं चाहता
अपनी थका देनी वाली यात्रा के उपरांत
ऐसा ही विश्राम।
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