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कौन चाहता है
कसौटियों पर कसे जाना ,
कौन चाहता है
निर्धारित मापदंडों के परे जाना
कौन चाहता है
सीमाओं को लांघना
कौन चाहता है
बंधनों को तोड़ना
कौन चाहता है
समाज से विरोध मोल लेना
कौन चाहता है
नव पथों पर चलना ।
कितना आसान होता है
जीवन में कसौटियों से बचकर,
मापदंडों के अनुरूप,
सीमाओं के मध्य ,बंधनों में जकड़े
एक जीवन जी लेना।
उन्हीं पुराने पथों पर
स्वयं को प्रतिदिन दोहराते हुए चलना
चाहे पड़े इसमें कितना ही घुटना,
स्वयं को कितना ही छलना।
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