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इन दिनों मैं अपराध बोध से ग्रस्त नहीं होता,
मैं अपने ही एकांतों में
अपने आह्लाद ढूंढ़ता हूं।
अपने गीत रचता हूं ,
औरों के रचे गीत गाता हूं,
अपनी धीमी और बेसुरी आवाज़ के
माधुर्य पर मोहित हो जाता हूं।
अपनी समस्त मूर्खताओं पर
लज्जित होनेकी जगह
मंद मंद मुस्कराता हूं।
अपनी सारी इच्छाओं
सारे स्वप्नों को जी लेना चाहता हूं
मैं बड़ी बड़ी बातों पर
छोटी प्रतिक्रियाएं भी नहीं देता,
राजनीति पर चीखती चिल्लाती बहसों से भी
थोड़ा भी उत्तेजित नहीं होता।
मैं किसी को दुखी नहीं करता,
पर कोई अनावश्यक
यदि मुझे अपने दुखों का कारण मानता है
तो भी मैं उसको नहीं स्वीकारता।
मैं अपने छोटे छोटे कार्य कर
किसी नन्हे शिशु सा
प्रसन्न अनुभव करता हूं।
मैं इन दिनो अत्यंत स्वार्थी हो गया हूं
और मात्र स्वांतः सुखाय जी रहा हूं।
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