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रात के अंधेरों से इतना क्यों घबराना,
रात के सीने में ही छुपे सुबहों के उजाले हैं।
शब न होतीं हो ख्वाब कहां जाते,
रात की नींदों ने ही तो,आंखों में ख्वाब कितने पाले हैं ।
उन झुके कांधों और कमजोर पांवों ने, मजबूती से
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