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सखि,
यह प्रथम वसंत है आया
कान्हा के मथुरा से द्वारका गमन के पश्चात
प्रकृति ने चतुर्दिक है रंग बिखराया
शत -शत पुष्प है पल्लवित
वृक्षो के गात पर नवल हैं पात
फूलें है गहरे लाल रंग के पलाश
फागोत्सव आने को है
इस बार न कन्हैया की मुरली की तान होगी
न वैसे मधुर गान होगें
कौन हमें अपने रंग में रंग जायेगा ,
कौन करेगा बरजोरी
कौन करेगा हंसी ठिठोरी
कौन करेगा बिन कान्हा हमको रंगों में सरोबार
सखि कैसे मनायेगें हम इस बार होरी
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