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वो पिता,
जिनके कारण है अस्तित्व तुम्हारा,
कभी पल भर कर लिया करो उनका भी ध्यान,
जिसने तुम्हारे कहने से पहले ही की,
जाकर अपनी सामर्थ्य से भी परे,
तुम्हारी सब आवश्यकताएं पूरी।
बिन कहे अक्सर ही समझ ली
तुम्हारे मन की बात,
जो तुम्हारे दुख से हुआ दुखी कितना,
पर कभी दिखाया नहीं,
तुम्हारे प्रति अपना स्नेह
कभी खुलकर ढंग से जताया नहीं।
कठोरताओं के झूठे आवरणों में,
छुपाकर रखी सब कोमलताएं,
तुम्हें बिन बोले ही
बिन मांगें ही देना चाहा सब कुछ।
तुम्हारी झुंझलाहटों को हंसकर टाल गया,
हर असफलता की घड़ी में
दे गया तुमको हौसले नये,
हर कठिन मोड़़ पर तुमको संभाल गया।
ज्योति रहे प्रज्ज्वलित तुम्हारे जीवन में
इसलिए
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