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कुछ अजीब सा लगेगा तुझे ,पर हकीकत तो यही है
कि गर तुझे मुझसे नहीं, तो मुझे भी तुमसे प्यार नहीं।
इक वक्त हसरत तो बहुत थी कि तूं मुझे अपना बना लेती
किये मैंने इशारे भी पर तेरे लबों पर कभी आया इकरार नहीं।
जो भी था दरमियाँ हमारे ,यूं ही दफन हो गया दिल में
न मैं कर सका बात, तुझसे भी कभी हुआ इजहार नहीं।
अब ऐसे तो कैसे गुजरती उम्र यूं ही उलझनों में इंतज़ार
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