मेरे बाबूजी's image
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पता नहीं क्या बात थी पर

अपने में रहते अक्सर सिमटे सकुचाये बाबूजी,

सारे दुख अपने सहेजें अपने तक

पूछो तो हंसकर टाल जाएं।

दो पैसे बचाने की खातिर

रिक्शा भी न करें

जून की कड़कती धूप में

मीलों पैदल चल जाएं।

अपने खेतों की मिट्टी से प्यार इतना,

धूप ,जाड़ा,बरसात न देखें

खेतों में जैसे मर खप जाए।

वैसे रहें चुप चुप से पर

कई बार बेमतलब की बातों पर

जोर जोर से ठहाके लगाएं।

अपने बचपन की बात सुनाते सुनाते

अक्सर भावुक हो जाएं।

औरों को कभी न छेड़े,

न उनके जीवन में टांग अड़ाएं,

पर अपने अधिकारों के लिए,

किसी से भी लड़ भिड़ जाएं।

अंतर में अपनों की खातिर

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