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लौटना कब होता है आसान
छोड़ी हुई जगहों पर ,
कब सरल होता है
छूटे हुए संवाद कायम करना ,
कब आसान होता है
छूटे हुए संबंधों के सिरे फिर से पकड़ना,
कब आसान होता है
टूटे हुए संबंधों को पुनः जोड़ना,
कब संभव होता है कभी
जीना बीते हुए पलों को।&
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