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पलने दो अंतर में ही ,
जलने दो अंतर में ही
पलती रहें अंतर में ही कामनाएं
जलती रहे अंतर में ही
सब वर्जित कामनाएं
क्यों अधरों पर लाएं
क्यों दृष्टि से छलकाएं।
2. कितने मापदंडों पर तौली जाती कामनाएं
कैसे तौलें उसे जो जागती हैं भावनाएं।
रह जाती हैं कितनी अनकही
रह जाती हैं कितनी अव्यक्त।
अधरों पर आती ही नहीं
उर से जाती ही नहीं
शब्दों में भी समाती ही नहीं
इनको कोई भला कैसे कहे
इनको भला कोई कैसे सुनाए।
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