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दुनिया में रहे पर कब हमने, दुनिया से यारी की
जो भी किया बस मन से किया कब हमने कोई दुनियादारी की।
भोलेपन में सौ बार लुटे हम अपने ही आंगन में ,
हमने कब खयाल रखा कब इतनी पहरेदारी की ।
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