
जो जहां है वहीं उसकी छटपटाहट,
वेदना ,विकलता बस इसलिए कि
वो वहां होना नहीं चाहता जहां है।
वहां तक पहुंचने का कोई मार्ग
या उसे दिखाई नहीं देता
जहां वो कभी जाना चाहता था,
अगर है सम्मुख भी तो वो
चलने का साहस जुटा नहीं पाता ।
उन चाहों और उन साथों की कल्पना
जिनकी कामना कभी पलती थी अंतर में
पर जो मिले ही नहीं
जो मिला उनको वो साथ बना नहीं पाए
जिनकी थी चाह हमें।
जीवन जो हमें देता है
उससे कहां मिलती है संतुष्टि
प्रायः हम सबको ही लगता है
जो हमें मिल रहा है
हम है अधिकारी
उससे कहीं बहुत अधिक के
हमें जो मिला
बहुत कम है हमारी योग्यता से।
इस विकलता में कई बार
कुछ लोग कर देते हैं
नये पथों का निर्माण,
तो कई लोगों के लिए
ये बना रहता है
जीवन भर ढोने वाला बोझ,
सालती रहती है जिसकी वेदना
उनको प्रतिदिन जिससे नहीं पाते वो उबर
रह जाता है जीवन उनका
जैसे एक ही जगह ठहर ।
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