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जो जहां है वहीं उसकी छटपटाहट,
वेदना ,विकलता बस इसलिए कि
वो वहां होना नहीं चाहता जहां है।
वहां तक पहुंचने का कोई मार्ग
या उसे दिखाई नहीं देता
जहां वो कभी जाना चाहता था,
अगर है सम्मुख भी तो वो
चलने का साहस जुटा नहीं पाता ।
उन चाहों और उन साथों की कल्पना
जिनकी कामना कभी पलती थी अंतर में
पर जो मिले ही नहीं
जो मिला उनको वो साथ बना नहीं पाए
जिनकी थी चाह हमें।
जीवन जो हमें देता है
उससे कहां मिलती है संतुष
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