Share0 Bookmarks 55036 Reads0 Likes
जर्जर होती काया हर दिन
पल प्रति पल क्षय होती काया,
पर हो रहा जैसे नित नवल मन।
नवल स्वप्न पर देखते हैं नयन
नव कामनाओं का
अंतर में होता है प्रस्फुटन।
नव भाव जागते हैं
नव राग जागते हैं
नव प्रीत जागती है
जागते हैं अनुराग नये।
नव पथ बुलाते हैं
स्वागत के लिए आतुर बांहें पसार
श्वेत मैघ ,नील नभ पुकारते हैं
हिमाच्छादित शिखर धवल बुलाते हैं
लहराती नदियों का आकर्षण करता है आमंत्रित
उफनता सागर बुलाता है जैसे पुकार।
कितने अनसुने स्वर
कानों से आ-आकर टकराते हैं
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments