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शालीनता, शिष्टाचार,
ये ओढ़े हुई गंभीरता के
रंगहीन चोले आज तो दे उतार,
चल रही है मदमाती बसंत बयार,
उड़ रही है चहुंओर रंगों की फुहार।
तूं भी खेल होली
किसी को रंग दे अपने रंग में,
किसी और के रंग में रंग जा,
मल दे किसी के गालों पर आज
जी भर अपनी प्रीत का गुलाल,
देख रह न जाए कोई भी मलाल।
धो देना अंतर की कालिमाएं आज सब
कर ले थोड़ी सी चुहल
थोड़ी सी छेड़छाड़ ,
कर ले किसी से आंखें चार।
कोई मान जाए जो बुरा
कह देना फागुनी बयार चल रही है कुछ ऐसी
कि पास तेरे आकर ठिठक गये ,
कुछ किसी ने पिला दी थी भांग चुपके से
कि बस आज बहक गये,
पर मत पूछ जब से तुझे छुआ है
किस तरह से हम महक गये ।
पूछ भी लेना सच बताइये
क्या क्रोध आपका सचमुच का है
या ये बस संसार को द
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