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आज कुछ पुरानी किताबों पर पड़ी
धूल झाड़ते हुए
मुझे याद अम्मा बाबूजी आ गये।
इन किताबों को पढ़ा था दोनों ने
घंटों दिनों तक अपने हाथों में ले लेकर ।
अम्मा ने कहा था
कई किताबों पर मैंने कवर चढ़ा दिया
नहीं तो फट रहीं थीं ।
इन चंद किताबों में कैद हैं
उनके हाथों की खुश्बूएं
कैसे मैं इन्हें अपने से जुदा करुं कैसे।
लोगों के चले जाने के बाद
रह जाती हैं बस उनकी यादें ,
उनकी कही बातें ,
उनकी छुई चीजों में
हमेशा के लिए रह गई उनकी गंध।
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