बस्ती's image
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जब बस रहीं थी बस्ती, तो आंख मूंदकर बैठे थे जिम्मेदार लोग

क्या उनको नहीं आ रहा कुछ नजर था।


वही लोग, अपनी पीठ थपथपाते अब कहते फिर रहे हैं कि

उजाड़ दिया तो क्या, नाजायज ये पूरा नगर था।



कोई पूछता है, मैं किससे करुं शिकायत ,पता नहीं

बात इतनी सी है, उजड़ी जो बस्ती उसमें मेरा भी इक छोटा सा घर था।



बेशक सजा दो गुनाह की, हर इक बड़े गुनहगार को

पर बख्श दो उसे ,जो है बेगुनाह या जिसका गुनाह मुक्तसर था।


तमाशबीनों की भीड़ जुटी थी, देखने को ये मंजर

किस -किस का उजडा़ घर, कौन- कौन हो रहा बेघर था।


एक दूसरे पर तोहमतों, इल्जामों का दौर जारी है यहां

पर सच में तो शक के घेरे में सारा शहर था।



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