
Share0 Bookmarks 30 Reads0 Likes
तुम्हें असमय खोने का दुख
तुमसे अंतिम बार न मिल पाने का दुख
तुम्हारे अंतिम दर्शन न कर पाने का दुख
बहुत कुछ जो किया जाना था
वो न कर पाने का दुख
बहुत कुछ अनकहा न कह पाने का दुख
बहुत कुछ जो कह दिया वो कहने का दुख
तुम्हारे अंतिम दिनों के अकेलेपन के दुख
जो बांट न पाया।
पर साथ हैं
बचपन की न जाने कितनी ही सुखद स्मृतियां
वो सहज ,सरल प्यार तुम्हारा
वो स्नेह लुटाना ,वो सीखें, वो समझाना
वो कान उमेंठना ,वो थप्पड़ लगाना
रुठने पर घंटों मनाना।
वो किताबों से गहन अनुराग तुम्हारा
जहां से लगा चस्का मुझको भी पढ़ने का
वो गरिमामयी रुप तुम्हारा
औरों को सदा रखना अपनों से ऊपर।
कितनी बातें ,कितनी यादें
जानता हूं मैं
नहीं लौटा सकता मैं तुम्हें
पर अब भी
लगभग रोज मुझे याद आती हो तुम
कभी अकेले कभी बाबूजी के साथ।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments