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जानता नहीं मैं
ढूढ़ते है किसको मेरे नयन
इन पथों पर टिकते नहीं एक जगह मेरे पांव
ठहरता ही नहीं एक जगह मेरा मन।
क्या है मेरे अंतर की धरा उर्वरा,
जहां भावों के न जाने कितने
बीज होते हैं अंकुरित
पल्लवित होते कितने गीतों के सुमन।
शब्दों में करता जो प्रतिबिंबित
मैं अनगिनत भावनाएं
कुछ सुख,कुछ दुख कुछ वेदनाएं
क्या कुछ कुछ झलक
उनमें अपनी हर कोई पाए ।
छुपकर न जाने क्यों
मैं आवरणों में रहता हूं
क्या पता किससे मैं बोलता हूं
किससे मैं क्या कहता हूं,
कौन मुझे सुनता है
कौन मुझसे कहता है,
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