
छत से सूखे कपड़े उठाना चाहतीं हूँ
उबासी लेते लेते तेरे पैर दबाना चाहतीं हूँ
तेरी वो दोपहर वालीं चाय बनाना चाहती हूँ
तुझे गरम गरम दो फुल्के खिलाना चाहतीं हूँ
इन्हीं कामों से तो तंग थी ,जब घर थी
अब यहीं सब फिर करने घर जाना चाहती हूँ
और फिर ना, ये काम ना करने के बहाने बनाना चाहती हूँ
मेरी कामचोरी की आदत पर तेरी डांट खाना चाहती हूँ
कैसी है, खाना खाया, खुश हैं - ये सब नहीं ,
क्या होगा तेरा, आलसी, नालायक, बेवकूफ़, बेशरम कहीं की - तुझसे ये सारे ताने सुनना चाहती हूँ ,
तुझसे लड़ के , थोड़ा गुस्सा दिखाना चाहती हूँ ,
और फिर मना के, बहुत सारा प्यार जताना चाहती हूँ ,
फोन पे ना, मम्मा, सब कुछ, बहुत मीठा हो गया है ,
तेरे मेरे रिश्ते का स्वाद बहुत फ़ीका गया है ,
इस गुड़ में थोड़ी इमली मिलाना चाहती हूँ ,
घर की वहीँ खट्टी यादे दोहराना चाहती हूँ ,
माँ, में वापस घर आना चाहती हूँ
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