
लोग यदि 'टेलीविजन' देखना बन्द कर दें तो मुझे लगता है कि वर्तमान समाज में जो भयावह स्थिति बनी है, उस(भयावहता: राजनीतिक, सामाजिक व अन्य)में तत्क्षण आधे की गिरावट आएगी Tv सभी समाजिक विकृतियों की जड़ बनती जा रही है।
यह घर-घर―जन-जन में स्वयं व परस्पर संवाद-विमर्श की परम्परा, आकलन, दूरदर्शिता, खुद में निर्णय लेने की क्षमता आदि सामाजिक का गला घोंट रही है, बदले में यह अकेलापन, अति-अनुकरण की आदत, अनेक बीमारियों को आमंत्रित करता है।
Tv से मनोरंजन कम, जन-जन में सामाजिक/पारिवारिक विकृति ज्यादा आ रही है। आज हर कोई समय की कमी से जूझ रहा है, ऐसे में tv रोज हर किसी का कम-से-कम 3-4 घण्टे बर्बाद कर रहा है। #स्मार्टफोन टीवी का हीं चलंत स्वरूप है।
ऑनलाइन (इलेक्ट्रॉनिक) सूचना की विश्वसनीयता भी संदेह के दायरे में रहती है, क्योंकि हर-कोई किसी खास एजेंडे के लिए कार्य कर रहा है। सूचना के लिए समाचार पत्र व रेडिये अभी भी विश्वसनीय हैं।
आज समाजिक परिदृश्य इतनी बदतर हो चुकी है की यदि हम सोचें कि केवल लोकतांत्रिक व्यवस्था, कार्यपालिक
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