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कदम
बढ़ रहे हैं
मंजिल की ओर
राहें बहुत दलदली हैं
शुष्क फिजायें भी
गिरने का भी डर
रफ्तार तेज करूँ तो
पाँव जमीं में धस जाते
जैसे कींचड़ में पैर
रफ्तार धीमी करूँ तो
दिल में बेचैनी भी होती है
क्या करूँ बड़ी उलझन है
ले लील भले ही राह मुझे
लौटना नहीं स्वीकार मुझे
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बड़ी विस्मय की बात य
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