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यूं वक़्त बे - वक़्त याद आया ना कर
इस दिल को यूं तरसाया ना कर,
ज़माना रुक रुक कर सुनता हैं नज़्में तेरी,
इस ज़माने को मोहब्बत की सच्चाई बतलाया ना कर,
जो लोग तेरे अपने हैं
उन्हें गैरों में गिनवाया ना कर,
क्या याद करता हैं आज भी तू उसे?
यूं हर बार दर्द की हदों तक जाया ना कर,
आज मुलाक़ात मुकम्मल नही
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