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बहरो को यहाँ सही कौन करे।।
गूँगों से कहा सुनी कौन करे।।
मेरी हर बात जब लगती है बुरी।।
बात-बात में कहा सुनी कौन करे।।
खर्च कर डाला है खुद को खुद।।
जीने की चाह को पूरी कौन करे।।
है डिग्रियाँ बोझ सी सब लदी हुई
क़िरदार को अपने सही कौन करे।।
✍️आकिब जावेद
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