
माँ
माँ की ममता सा नही कोई भी देखा अपना
खून के आँसू से औलाद भी पाला अपना
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पोछने को नही आता यहाँ कोई आँसू
कौन है माँ के सिवाए हमें कहता अपना
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देखता तक नही औलाद वो जो साहब हो कर
माँ ने औलाद पे घर - बार लुटाया अपना
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ये घरौंदा जो बसाया पसीने से उसने
परवरिश में माँ ने सब कुछ तो लुटाया अपना
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बोल दो प्यार से तुम भी यूँ कभी बोले हो
माँ के जैसा न मिलेगा यहाँ सच्चा अपना
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माँ भी तकलीफों को सह लेती है हँस हँस कर के
दर्द में माँ के अलावा नही दूजा अपना
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रखकर फ़ाक़ा जिसने दी है उड़ान ये 'आकिब'
हूँ माँ के आगे मैं भी सर यूँ झुकाता अपना
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आकिब जावेद
बाँदा(उ.प्र.)
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