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जवाँ है होंसला हवा के रुख़ बदलने का
लिखूं मैं गीत किसी रूप के सँवरने का
पहाड़ - सा हो इरादा , कि आँधियाँ सहमें
न रेत घर बने कि , ख़ौफ़ हो बिखरने का
बजे वो साज कि नाचें , लहर के रूहें भी
मैं गाऊँ राग आबशार के मचलने का
जियूँ ये जिंदगी फिर से ,महकते फूलों - सी
खिलूं मैं ले के जवाँ जोश, हँस के मरने का
बना के दोस्त सभी मौसमों को मैं यारो
पियूँ वो जाम कि न होश हो सँभलने का
बनूँ न आब कि बह जाऊँ मैं ढलानों में
मैँ लाऊँ आग का जज़्बा भड़क के खिलने का
खिलें 'आकिब' भी लिए कल की फिर से आशायें
हो फ़ख़्र फिर से चमन में मेरे निखरने का
-आकिब जावेद
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