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सरे बाजार सौदा हो रहा है।
मियां हर चीज महंगा हो रहा है।
बहुत बेरोजगारी है; जहाँ में,
सियासत से ही ऐसा हो रहा है।
हवा चलने लगी है; नफ़रतों की,
तभी इतना ख़सारा हो रहा है।
बुलंदी में है परचम मुल्क़ का यूँ,
जहाँ में नाम ऊँचा हो रहा है।
गरीबो को मिली है छत यहाँ पे,
सुनो यारों दिखावा हो रहा है।
नज़र से दूर था, आज वो भी,
मुहब्ब्त में हमारा हो रहा है।
तुम्हारा क्या-हमारा क्या; यहां पे,
सभी कुछ तो दिखावा हो रहा है।
ज़ुलैख़ा सी मुहब्ब्त कौन पाया,
जो प्यासा है, वो दरिया हो रहा है।
नहीं सुनता किसी की कोई "आकिब",
ये कैसा ज़माना हो रहा है।
-आकिब जावेद
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