#ग़ज़ल
बोझ ग़म का उठा नहीं सकता।
दर्द अपना बता नहीं सकता।
इश्क़ का रोग जो लगाया है,
आईना भी छिपा नहीं सकता।
ज़िंदगी है तो ग़म मिलेंगे ही,
हौसलें को डिगा नहीं सकता।
दर - ब - दर ठोकरें&nb
No posts
Comments