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ग़र इंसां का पता नही होता।
ज़िंदगी भी ज़िया नही होता।
वो सफ़र में मिला नही होता।
दर्द मेरा हरा नही होता।
ज़िंदगी की पतंग भी उड़ती।
डोर से फ़ासला नही होता।
दौलत ही चीज़ ऐसी होती हैं।
क्या इंसां में नशा नही होता।
दूर नज़रों से मेरा हमसफ़र हैं।
क़ाश मुझसे ख़फ़ा नही होता।
आसमाँ में ग़र आशियाँ होता।
इस जहाँ का पता नही होता।
लब पे आकिब' न नाम ये लाता।
तज़किरा भी तेरा नही होता।
-आकिब जावेद
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