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दर्द ने ज़िन्दगी भर हवा दी है क्या
बुझ रही इस शमा को जला दी है क्या
उड़ रही ज़िन्दगी ये हवा की तरह
आग इसमें किसी ने लगा दी है क्या
लब से अपने वो कुछ बोलते क्यों नही
ग़म की गठरी किसी ने थमा दी है क्या
भूल बैठा है खुशियों को अपने यहाँ<
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