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दर्द ने ज़िन्दगी भर हवा दी है क्या
बुझ रही इस शमा को जला दी है क्या
उड़ रही ज़िन्दगी ये हवा की तरह
आग इसमें किसी ने लगा दी है क्या
लब से अपने वो कुछ बोलते क्यों नही
ग़म की गठरी किसी ने थमा दी है क्या
भूल बैठा है खुशियों को अपने यहाँ
ज़िन्दगी ने उसे भी सज़ा दी है क्या
बोलते - बोलते जो नही थकते थे
आज आवाज उनकी दबा दी है क्या
देख ग़ैरों को यूँ प्यार करते हुए
ग़म में उसके किसी ने हवा दी है क्या
थाम कर हाथ तेरा यूँ आकिब' चला
खोई हिम्मत किसी ने जगा दी है क्या
-आकिब जावेद
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