
Share1 Bookmarks 231 Reads2 Likes
सब छतों पर खड़े थे, दीदार चांद के लिए
सब इंतजार में थे अपने करवा के लिए
मैं भी था छत पर खड़ा पता नहीं क्यों?
शायद इंतजार कर रहा था चांद निकलने का
चांद ने भी सुनी सबकी ,दर्श दे दिए
आया छटा बिखेरते, अर्श में लिए
खूब दीदार किए सबने, मैं भी निहारता रहा
खूबसरत इतना कि मैं दसों बार समा गया
यूं ही नहीं होती तार
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments