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मैं पहाड़ो पर बैठ कर हँसता हूँ बहुत जोर से
तरस खाता हूँ
जब देखता हूँ शहरों की और
की फंसे है लोग
जाने किन-किन झंझावातो में
पर जब लौटता हूँ शहर
वो हंसी मुझे ही सबसे ज्यादा खीजती है
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मैं पहाड़ो पर बैठ कर हँसता हूँ बहुत जोर से
तरस खाता हूँ
जब देखता हूँ शहरों की और
की फंसे है लोग
जाने किन-किन झंझावातो में
पर जब लौटता हूँ शहर
वो हंसी मुझे ही सबसे ज्यादा खीजती है
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