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इस जग, संसार, सृष्टि में
कोई न हो पाया अपना
कोई भी कैसा भी रिश्ता
कितना भी पकि पावन
इस अनोखी सी सृष्टि में
कोई हितक हमारा यहां
ना हो पाया स्वजन का
कोई न निज इस जग में।
इस खलक का खेल है यह
जब तक गर्ज तब तक मित
जरूरत खत्म होने के पश्चात
आप है कौन ? जैसे अंजान
एहतियाजता पड़ने पर ही
कोई किसी को
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